“मन के हारे हार है, मन के जीते जीत”
आज नेशनल कैंसर सर्वाइवर्स डे है। कैंसर हमारे देश ही नही दुनियाँ भर में मौत का बड़ा कारण है। इससे पीड़ित होने आशंका या रिस्क फेक्टर भी हमारे जीवन के लिए घातक होते है। कैंसर से अधिक घातक उसके असाध्य होने का भय है। ये भय निरर्थक भी नही है क्योंकि कैंसर से लड़ाई में इंसानियत की जीत राई के बराबर ही है। तमाम विकास और जागरूकता के बाबजूद यदि हम अपने आसपास मध्यप्रदेश में ही देखे तो कैंसर के सामने हमारी तैयारी नगण्य है। ब्रेन ट्यूमर के मरीजों को रेडिएशन देने गामा नाइफ की सुविधा हमारे यहाँ बिल्कुल नही है। कैंसर सिकाई के लिए आधुनिक प्रोटोन थेरैपी प्रदेश में कहीं नही है। प्रोस्टेट कैंसर का फैलाव पता करने PMSA की सुविधा भी प्रदेश में नही है। कैंसर के सर्जन एवं फिजिशियन भी उंगलियों पर गिने जा सकते है। कुल मिला कर स्थिति बहुत दयनीय है, भयभीत होना बिल्कुल उचित है।
कैंसर के विरुद्ध जंग तथा जागरूकता के लिए इस विषय के डाटा महत्पूर्ण उपकरण है। इंडियन कौंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने कैंसर के विभिन्न प्रकारों, रूपो, उम्र एवं रहन-सहन की स्थिति में फैलाव कि आशंकाओं के आकलन हेतु “कैंसर रजिस्ट्री” प्रोग्राम चलाया है। भोपाल समेत देश भर में इसके बीस केंद्र संचालित है परन्तु 2016 के बाद इसकी कोई रिपोर्ट नही आई है। अर्थात हमे 4 साल से अधिकृत रूप से यह ज्ञान नही है कि कौन कैंसर समाज मे बड़ रहा है, कौन घट रहा है, कौन जीवन शैली एवं उम्र का कैंसर पर या मरीज पर क्या प्रभाव हो रहा है।
इस प्रकार कैंसर को मौत का पर्याय बनाने, उसके भय को बढ़ाने के पर्याप्त कारण है, कैंसर का भय मौत का बड़ा कारण है क्योंकि जीवन के लिए शारीरिक दर्द से ज्यादा मानसिक दर्द घातक है। फिर भी अनेक पीड़ितों ने कैंसर को मात दी है, उनके अनुभव शेष समाज के लिए संजीवनी है। प्रति वर्ष जून माह के प्रथम रविवार को कैंसर सर्वाइवर्स का राष्ट्रीय दिवस मनाने के पीछे भाव यही है कि हम ऐसे लोगो को खोजे और उनसे सीखे जिन्होंने कैंसर को हराया है, जिंदगी को जिताया है। हमे ऐसे लोगो की उपलब्धियों को अनुभव करना है, स्वीकार करना है, ऐसे लोगो का अभिनंदन करना है, उनके अनुभवों से सीखना है।
कैंसर को मात देने वाले में जिन लोगो का प्रचार प्रसार हो पाया है, उनमें सोनाली बेंद्रे, ताहिरा कश्यप आदि सेलिब्रिटीज के ही नाम आ पाए है। इन्होंने कैंसर को हराया, जीवन को जिताया यह इंसानियत के लिए बड़ी उपलब्धि है निश्चित ही सराहनीय है। पर हमारे देश मे बड़ा वर्ग जो आकार में सेलिब्रिटीज से लाखों गुना बड़ा है वह सेलिब्रिटीज की उपलब्धियों और अनुभव से कितना लाभान्वित होगा इसका आकलन मुश्किल है। क्योंकि सेलीब्रिटीज एवं आम जन या गरीब जन के जीवन स्तर में जमीन आसमान का फर्क है। आम जन में भी हमारे आसपास ऐसे अनेक लोग होंगे जो केसर से जीते है, वो चाहे इलाज लेकर जीते है या व्यवस्था की नाकामी से इलाज से वंचित रहे, फिर भी कैंसर से संघर्ष कर रहे है, जीत रहे हैं। इनका डाटा समाज के लिए बहुत अधिक उपयोगी हो सकता है। कैंसर रजिस्ट्री का फंग्सन में होना बहुत जरूरी है, तभी हम अपने आसपास के कैंसर सर्वाइवर्स को समझ पाएंगे, उन से सीख पाएंगे।
प्रसिद्ध कैंसर सर्वाइवर्स के अनुभव में यह तथ्य लगभग समान है कि उन्होंने जीने की उम्मीद नही छोड़ी, बीमारी को अपने मन पर हावी नही होने दिया, अपने आपको पहले से अधिक व्यस्त रखा, संगीत, कला साधना जैसे सकारात्मक कार्यो को अपनाया, अपने परिवार को अपनी ताकत बनाया।
नेशनल कैंसर सर्वाइवर्स डे की सार्थकता भी इसी में है कि हम हर संभव माध्यम से सकारात्मक जीवन के प्रति जागरूकता का प्रसार प्रचार करे, निश्चित ही ऐसा करके हम कैंसर सर्वाइवर्स का सच्चा अभिनंदन करेंगे। जागरूकता भौतिक विकास की प्रथम अवस्था है। जागरूकता के माध्यम से हम प्रत्यक्षतः सकारात्मक मानसिकता और आशावाद को बढ़ाएंगे तथा भौतिक संसाधनों और मैडिकल सुविधाओं के सुधार की जमीन भी परोक्ष रूप से तैयार करेंगे।